बुधवार, 19 अक्तूबर 2016


"अजीत " कहानी एक हीरो और खलनायक की (मेरे पसंदीदा कलाकार )

देवेन्द्र कुमार शर्मा ११३,सुंदरनगर रायपुर छ.ग.
' सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है ' वाले विलेन अजीत की छवि कभी एक नायक के रूप में भी मशहूर थी और वे शम्मी कपूर स्टाइल में नायिकाओं के पीछे गाते घूमते थे. १९४५ से फिल्मो में सक्रिय अजीत की जोड़ी गीताबाली के साथ ' बारादरी ' में, ' गेस्ट हॉउस ' में शकीला के साथ और ' ढोलक ' में मीना शौरी के साथ खूब याद की जाती हैशिकारी फिल्म में रागिनी के साथ
नास्तिक और मिलन् फिल्मो में नलिनी जयवंत
तीर अंदाज़ फिल्म में मधुबाला
ओपेरा हाउस फिल्म में बी.सरोजा देवी नया दौर के "कृष्णा" और मुग़ल आज़म के "दुर्जन सिंह" को कौन भुला सकता है अजीत साहेब हिंदी सिनेमा के एक मजबूत स्तम्भ रहे है ... नायक. बेजोड़ खलनायक...सहअभिनेता।

आज से तीस साल पहले हैदराबाद से एक नौजवान हीरो बनने के लिए मुम्बई आया। पास में पैसे कम थे इसलिए क्राफर्ड मार्केट के पास किसी धर्मशाला में पांच रुपये दैनिक पर इतनी जगह मिल गई जहां कि जहां कि ट्रंक रखा जा सकता था। यह और बात है कि उस ट्रंक पर सोने वाले से सोने के पैसे नही लिए जाते थे। दिन भर वह स्टूडियो के चक्कर लगाया करता लगाय करता और रात की ट्रंक पर आकर सो जाता। उस कमरे के पास ही गुंडे रात को जुआ खेला करते थे। और लोगों की नींद में खलल डालते थे, नौजवान की भी कई बार नींद खराब हुई थी। किन्तु उसे तो हीरो बनना था। इसलिए वह उनके मुंह नही लगता था।
एक रात, दिन भर का थका हारा नौजवान घोड़े बेचकर सो रहा था। यकायक शोर मचा और उसकी नींद टूट गई। देखा तो कमरे में भूचाल आया हुआ है। पुलिस ने जुआरियों को पकड़ने के लिए रात को छापा मारा था। जुआरी अपनी जान बचाने के लिए कमरे मे घुस आये थे। पुलिस कमरे में घुसकर जुआरियों को पकड़ रही थी। पुलिस वहां से सबको पकड़ कर प्रिंसेस स्ट्रीट के थाने में ले गई। सबको अन्दर बन्द कर दिया। और इन बन्द होने वालों में वह नौजवान भी था।
यह घटना शनिवार की रात को पेश आई थी। अगले दिन रविवार था इसलिए पेशी सोमवार से पहले नही होनी थी। इसका अर्थ यह था कि एक ऐसे अपराध में जो कि उसने किया भी नही, दो रातें जेल में काटनी पड़ेगी। यह ख्याल आते ही नौजवान बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोने लगा। नौजवान की हालत देखकर ड्यूटी पर मौजूद इंस्पैक्टर उसके पास आया और रोने का कारण पूछने लगा। नौजवान ने उसी तरह रोते हुए कहा, मैं निर्दोष हूं। मुझें रिहा कर दीजिए इंस्पैक्टर को नौजवान की बात में कुछ सत्य की झलक नजर आई। वह बोला, अगर तुम बेकसूरों की शिनाख्त करके अपराधियों को वही छोड़ दो तो तुम्हारे साथ दूसरे बेगुनाहों को भी छोड़ दूंगा।
नौजवान ने इंस्पैक्टर की शर्ते मान ली और दरिया में रहते हुए मगरमच्छ से बैर मोल ले लिया। परन्तु उसे वहां रिहाई मिल गई। सोमवार को नौजवान अपना भाग्य आजमाकर वापस आया तो देखा एक भयानक किस्म का दादा रामपुरी चाकू खोले उसका रास्ता रोके खड़ा है, बोल तूने उस दिन थाने में बेकसूरों के साथ मुझे क्यों नही निकलवाया? अब तुझे उसकी कीमत अपनी जान से देनी पड़ेगी।
नौजवान इतना सुनकर डर के मारे कांपने लगा। फिर न मालूम कहां से उसमें साहस आ गया कि दादा के चाकू के वार से बच कर सीधा पुलिस स्टेशन भागा चला गया। इंस्पैक्टर ने नौजवान की कहानी सुनी और तुरन्त जीप निकाल कर उस दादा की तलाश में निकल गया।
पुलिस ने दादा को गिरफ्तार करने के पश्चात बुरी तरह पिटाई की। उस दिन के बाद से दादा सीधा हो गया। उस नौजवान की धाक बैठ गई। आज वह नौजवान फिल्मों का दादा और गेन्गस्टर बॉस जैसी खलनायक की भूमिकाएं निभा रहा है हालांकि उस वक्त वह हीरो बनने आया था। और हीरो बना भी। लेकिन समय के साथ समझौता करके वह नायक से खलनायक बन गया और अपने टाईम में जितनी कीमत लेता था, उसके पांच गुना आज ले रहा है। उस नौजवान को आज आप अजीत के नाम से पहचानते है।
बतौर हीरो फ्लॉप थे मशहूर खलनायक अजीत
हिंदी सिनेमा में लायन के नाम से मशहूर अभिनेता अजीत का असली नाम था हामिद अली खान. बचपन से ही हीरो बनने का ख्वाब देखते रहते थे. एक दिन अपने इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए हामिद अली खान अपनी कॉलेज की किताबों को बेचकर हीरो बनने मुंबई आ गया. मुंबई आने के बाद हामिद अली खान को संघर्ष के बाद फिल्मों में बतौर हीरो 1940 के दशक में कई फिल्मों में काम तो मिला लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही थी. हिंदी सिनेमा में दो दशकों का सफर अजीत ने पूरा कर लिया लेकिन कामयाबी कोसो दूर थी. तभी राजेंद्र कुमार के कहने पर अजीत ने फिल्म सूरज में पहली बार विलेन का किरदार निभाया. और यहीं से अभिनेता अजीत खलनायकी की दूनिया के सरताज बनने लगे. सूरज के बाद ज़ंजीर. कालीचरण जैसी फिल्मों में अजीत की खलनायकी ने उन्हे घर घर में मशहूर कर दिया. पर निहायत ही पाबंद अजीत ने अस्सी के दशक में फिल्मों में काम करना बंद कर दिया. फिर करीब 10 सालों तक अजीत ने फिल्मों में काम नहीं किया. एक दिन देवानंद और बाकी दोस्तों के समझाने के बाद अजीत ने फिल्म जिगर से फिल्मों में 1992 से वापसी की. और अपनी दमदार एक्टिंग का फिर से लोहा मनवाया
संवाद बोलने की नई ट्रेंड की शुरुआत अजीत ने की। अजीत की मौत हार्ट एटैक से साल 1998 में हो गई। ये अजीत ही थे जिन्होंने 'मोना डार्लिंग' को अमर कर दिया। वे बॉलीवुड की सबसे सौम्य और वेल ड्रेस खलनायक थे।
मायापुरी अंक 15.1974 से साभार 

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