रविवार, 23 अक्तूबर 2016



श्री नजीब जंग ( इस समय दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर हैं )  जब गंगरेल के डूबान एरिया मे   हमारे सामने हि महानदी के पानी में कूद पड़े ,,,, ,,,,  ?    (पुरानी यादों में से )




छत्तीसगढ़  के धमतरी जिला  में गंगरेल बांध के निर्माण के कारण नज़दीक के बहुत से गांव जो की कभी दस कि.मी के भीतर पहचे जा सकते थे पानी मे गाव के डूबान की वजह से  दूरस्थ और पहुच विहीन हो गए है  । उस समय शहर से इनमे पहुँचना बहुत ही कष्ट प्रद कार्य था। उस समय इन ग्रामो मे जाने हेतु नाव या फिर लम्बा घूम कर इन  32 ग्राम को  बस्तर मे  (कांकेर जिले के ) चारामा अथवा बालोदगहन (बालोद जिलाके  राजाराव पठार) या फिर झेपरा होकर जाना पड़ता था।
आदिवासी ग्रामीण जन मुआवजा ,वन विस्थापन, जमीन बेदखली आदिसमस्या से पीड़ित होकर  नगरी सकरा में एक जमीं से जुडे नेता थे उनके नेतृत्व में अक्सर  पैदल चलते हुए  रायपुर पहुच कर धरना प्रदर्शन किया करते थे।
इसलिए जिला में जो भी कलेक्टर पदस्थ होते ,अपने कार्यकाल में इन एरिया का दौरा कर जन समस्याओ को स्वयं भ्रमण कर प्राथमिकता पर  सुनते रहते थे।
तब उन जगहों के दौरा करना यानि काफी लंबे समय पहले से फील्ड मे पदस्थ अधिकारी /कर्मचारी को  मन को मज़बूत कर  तैयार होना  होता था। क्योंकि उधर के  गांव  तक पहुचना सड़क के आभाव में बहुत ही कष्ट प्रद कार्य था।
आज क्या स्थिति है   मुझे ज्ञात नही है।
अजीत जोगी जी जब हमारे कलेक्टर थे। उनके उस एरिया में कई बार दौरा हुआ. जिसमे सारे विभागों के आधिकारी को संग मे चलना होता था पता नही कब किस विभाग  की समस्या सामने  आ जाये ।
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   (पुरानी फाइल  फोटो से  सबसे बाये मैं  स्वयं )


वे तब चैन स्मोकर थे, इसलिये विल्स सिगरेट के अनेको पैकेट और मॉचिस की डिबिया भी आधिकारियो के जेब में अलग से  रखे रहते थे।
                 उनके स्थानान्तरण के बाद   फिर नजीब जंग साहब कलेक्टर पदस्थ हुये। .वे उस समय बहुत ही खूबसूरत व् दबंग व्यक्तित्व के कलेक्टर  माने जाते थे। उनकी कार्यप्रणाली कुशल   प्रशासक के रूप में रहा।
 साथ ही अली यावर जंग (भुपु राज्यपाल Maharashtra in 1971) के नज़दीकी रिस्तेदार होने का भी लोगो पर ज्यादा प्रभाव रहा।
खैर इनका भी दौरा डुबान एरिया में गर्मी के दिनों में हुआ । उस समय कलेक्टर के पास भी महेंन्द्रा की जीप  हुआ करती थी  । दौरा में धमतरी से स्थानीय पत्रकार भी हमारे साथ ही चले थे  । .जिनमे एक नईदुनिया के जियाउरहुस्सैन भी साथ  थे। इन्हें बाद में इसी एरिया की बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग के लिए कलकत्ता में इंडिया लेवल के माने हुए पत्रकारों के साथ किसी  प्रसिद्ध     पुरस्कार से सम्मानित  भी किया गया था।
बिना ताम झाम के पंचायत भवन अथवा स्कूल भवन में इकठ्ठे ग्रामीणों , जन प्रतिनिधियो , से चर्चा करते हुये हमारा काफिलाश्री नजीब जंग के साथ बढ़ा चला जा रहा था।
और इस तरह हम लोग धमतरी जिले के  डुबान एरिया के अंतिम छोर पर पहुच चुके थे। गर्मी पुरे शबाब पर थी। आगे से बस्तर जिले के नरहरपुर का एरिया प्रारम्भ होता था।
कुछ ग्रामवासी अन्दर के एक टापू नुमा गाव से  छोटी सी डोंगी में बैठकर आये हुए थे।
 उन्होंने रोड मे खड़े होकर  हमे रुकने का इशारा किया था।  जीप रोके गए ,उस जगह पर महानदी का पानी सड़क के बिलकुल ही नज़दीक दिख रहा  था।
अब ग्रामवासियों ने  अपना किस्सा बयां करना प्रारम्भ किया की कैसे उनके गांव तक सिर्फ डोंगी में ही बैठकर जाया जा सकता है। बच्चे भी स्कूल डोंगी में ही बैठकर आते है।
मैंने भी उनके बात का सपोर्ट किया ,क्योंकि मुझे कुछ ही दिन पहले हुए चुनाव में पोलिंग पार्टी को डोंगी में बैठा कर उस गांव तक पहुचवाना पड़ा था। और जोनल  ऑफीसर की हैसियत  से डोंगी मे ही बैठकर तब  उस गांव को घूम आया था।
उनकी बात श्री जंग साहब ने गंभीरता से सुनी  ,और साथ ही  राजस्व और ब्लोंक को छोड़  अन्य विभाग के अधिकारियो को आगे बढ़ने कह दिया। और काफिला से अन्य विभाग के लोग  आगे बढ़ गये  । हम लोग चूँकि  एस डी ओ साहब के साथ थे रुके हुए थे। जैसे ही ह्म उनके ग्रामीणों से चर्चा परांत आगे .बढ़ने को तैयार हुए ही थे कि जंग साहब ने सर से हैट उतार कर लोगो से  पूछा यहाँ पर नदी की गहराई कितनी है.।
जानकार लोगो ने बताया की 07 से 12 फ़ीट है। तब तक उन्होंने अपनी सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद पेंट भी उतारना प्रारंभ कर  दी।
लोगो ने उन्हें समझाया की सर नदी में झाड़ के ठूंठ होने से यहाँ पर खतरनाक है ,साथ ही इधर मगर भी देखे गए है। किन्तु वे बात सुनते सुनते गर्मी से परेशां होकर महानदी में सिर्फ अंडरवियर  मे कूद पड़े और नदी मे  तैरने लगे।
तब तक पत्रकार जियाउल खान ने अपनी कैमरे से उनकी फोटो खीचने की कोशिस की ही थी की श्री जंग साहेब ने  नदी के अन्दर से  हाथ से इशारे कर उन्हें रोक दिया। बोले मिस्टर पत्रकार तुम्हारे कैमरे को उठाओ मत आराम करने दो ...?
खैर कुछ देर तैरने के बाद अब जब वे बाहर आये तो टॉवल किसी के पास भी नही था और नही उनके अर्दली को भी इस आकस्मिक होने वाली घटना का अंदेशा था  । अब गीले बदन से अंडर वियर को  कैसे बदला जावे।  ये बाकि खड़े आधिकारी के लिए सोच का विषय बनता ,इससे पहले ही श्री नजीब जंग साहब की   नज़र मेरे कंधे में रखे लाल गमछे पर पड़ी ,जिसे की मैंने अपने गर्मी से बचाव के लिए सर ढकने हेतु  रखा था।
 उन्होंने उसे बिना किसी औपचारिकता के  मेरे कंधे से खीचकर जीप के आड़ में जाकर  कपडे बदल लिया।
और और इसके बाद बस्तर के नरहरपुर के रास्ते से होते हुए होते हुए हम सब वापस धमतरी लौट पड़े।तथा यह घटना लोगो मे कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा .

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