बुधवार, 6 जुलाई 2016

स्थानांरण नहीं हो रहा हो तो मुक्तागिरी  के दर्शन करो ...? 

 बैतूल - मेरे पसंदीदा शहर  में से एक .. डी. के. शर्मा


वर्ष 2000 में अचानक ही मुझे बैतूल  जिला में पदस्थ किया गया। बैतूल सतपुड़ा की वादियों में मध्य प्रदेश का एक जिला है जो की  इटारसी नागपुर के मध्य स्थित है।  समीप ही स्थित रेल्वे स्टेशन बरसाली  भारत के केंद्र बिंदु है। इस जिले की खास बात है कि ये देश के बिल्कुल केंद्र में बसा है।


   बैतूल शहर तीन हिस्सों में बंटा है। मेरा कार्यालय बस स्टैंड के पास ही था तो मैंने  समीप के एक लॉज में ही रहना प्रारम्भ कर दिया क्युकी समीप ही भोजनालय और पिक्चर हॉल भी था।  साथ ही  बैतूल के बस स्टैंड में  कही भी जाने को बस मिल जाती थी। रेलवे  स्टेशन  तक जाने के लिए सस्ते मे तांगा  और आसपास में अच्छा बाजार भी   है  ।


जैसे की पहले मैंने बताया  बैतूल शहर तीन हिस्सों में बंटा है। बैतूल बाजार, बैतूल गंज( रेलवे स्टेशन के पास का इलाका) और बैतूल कोठी बाजार। कोठी बाजार बस स्टैंड के पास का इलाका का नाम  है। रेलवे स्टेशन के तरफ कल्लू  ढाना और भग्गू ढाना आदि , आदि।  

ताप्ती नदी के उदगम  स्थल
 बैतूल से 45 किलोमीटर आगे मुलताई में ताप्ती नदी का उदगम स्थल है।जिसकी भी मान्यता नर्मदा जी की ही जैसी है ,और यह नर्मदा की एक सहायक नदियों में से एक है।धार्मिक मान्यता के अनुसार मा ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हे ताप्ती से राहत मिलती है । ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शकित प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है । दिवंगत व्यकितयों की असिथयों का विसर्जन भी ताप्ती में करते है । म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है । इस नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक सामाजिक महत्व भी है । सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुर्इ है । इस नदी की लंबार्इ 724 किलोमीटर है । यह नदी पूर्व से पशिचम की और बहती है इस नदी के किनारे बुरहानपुर और सूरत जैसे नगर बसे है । ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाडी  में गिरती है ।
 बैतूल में बने बालाजीपुरम मंदिर को   देश का पांचवा धाम कहा जा रहा है। बालाजीपुरम बैतूल रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर नागपुर हाईवे पर है । और  बस स्टैंड से 10 किलोमीटर है। हर थोड़ी देर पर बालाजीपुरम के लिए बस स्टैंड से टाटा मैजिक जैसी गाड़ियां मिलती हैं। मैंने इस मंदिर का निर्माण होते देखा है।  बालाजी मंदिर पुराने नागपुर रोड पर है।बालाजीपुरम भगवान बालाजी का विशाल मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। यह स्थान बैतूल बाजार नगर पंचायत के अन्तर्गत आता है। जिला मुख्यालय बैतूल से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 69 पर सिथत है। दिन प्रतिदिन इसकी प्रसिद्धि फैलती जा रही है। यही कारण है कभी भी किसी भी मौसम में आप इसमें जाएं श्रद्धालुओं का ताता लगा रहा है। मंदिर के साथ ही चित्रकुट भी बना है। जिसमें भगवान राम के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों को प्रदर्शित किया गया है। मूर्तियां ऐसे बनी है जैसे बोल पडे़ं मंदिर के पीछे से फोर लेन हाईवे गुजर रहा है।
शहर के समीप ही सोनाडीह स्थित हनुमान का मंदिर ऊपर टेकरी पर है। जो की पिकनिक के लिए अच्छी जगह है। 
साफ सुथरा  रेलवे स्टेशन
सामान्य तौर  में भोपाल के दिशा से  से बैतूल आने वाली ट्रैन समय से पहली  ही आ जाती  है। ,
बैतूल का रेलवे स्टेशन काफी साफ सुथरा है। रेलवे स्टेशन के बाहर खूबसूरत उद्यान बना है जिसमें तरह तरह के फूल हैं। दूसरे दर्जे का प्रतीक्षालय भी एक दम चमचमाता हुआ साफ सुथरा है। शौचालय की सफाई भी अति उत्तम है। ऐसे साफ सुथरे रेलवे स्टेशन कम ही दिखाई देते हैं।  स्टेशन परिसर में बड़ी बड़ी तस्वीरें लगी है जिसमें बैतूल जिले के आदिपासी डंडा नृत्य, आदिवासी गायकी नृत्य, तेजपत्ता के जंगल, सागवान के जंगल और दूसरे तरह के जंगलों के बारे में तथा मुक्तागिरी जैन तीर्थ स्थान सम्बन्धी  जानकारी दी गई है।
स्थानांणतरण नहीं हो रहा हो तो मुक्तागिरी के दर्शन करो....?   
मुक्तगिरी प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो की उचे पहाड़ों और झरनों की बीच स्थित है। यह जगह शासकीय नौकरी करने वालो में भी अत्यन्त ही प्रसिद्ध है ,बोलते है की यदि वहां  पर जाकर कोई भी  ट्रान्सफर की अपेक्छा करता है तो वह निश्चित ही पूरा हो जाता है। यही सोचकर मई भी वह पर दर्शन के लिए गया था ,और चाहे जो भी मूल कारण हो 07 में मुझे म प से छत्तीसगढ़ से स्थानांतरण  आदेश मिल गया था ,और यही बात मेरे बाद मेरे एक मित्र ने भी बताई थी।
विकासखण्ड  भैसदेही  की ग्राम पंचायत  थपोडा में स्थित  है महान जैन तीर्थ मुक्तागिरी। मुक्तागिरी  अपनी सुन्दरता, रमणीयता और धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी और आकर्षित  करता है । इस स्थान पर दिगम्बर जैन संप्रदाय के 52 मंदिर है।  इन मंदिरों की तथा क्षेत्र का संबंध श्रेणीक विम्बसार से बताया जाता है। यहां मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की सप्त फणिक प्रतिमा स्थापित है जो शिल्पकारी  का बेजोड नमूना है। इस क्षेत्र में स्थित  यह एक  मन कों शांति और सुख देने वाला जगह  है। निर्वाण क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक व्यकित को यहां आकर सुकून मिलता है।

 राजा  जैतपाल बैतूल जिले में 11 वीं शताब्दी में भोपाली क्षेत्र में राज करता था। उसकी राजधानी खेड़लादुर्ग में थी। इस दुर्ग के तक्कालीन अधिपति राजा जैतपाल ने ब्रहम का साक्षात्कार न करा पाने के कारण हजारों साधु सन्यासियों को कठोर दण्ड दिया था। इसकी मांग के अनुसार महापंडितों योगाचार्य मुकुन्दराज स्वामी द्वारा दिव्यशकित से ब्रहम का साक्षात्कार कराया था तथा इस स्थान पर दण्ड भोग रहे साधु सन्यासियों को पीड़ा से मुक्त कराया था उन्होंने हजारों सालों से संस्कृत में धर्मग्रंथ लिखे जाने की परम्परा को तोड़ा। उन्होनें मराठी भाषा मे लिखें  सिन्धु की महत्ता पूरे महाराष्ट्र प्रान्त में है। यह स्थान पुरातत्व एवं अध्यात्म की दृषिट से अति प्राचीन है।
तांगा की  सरपट सरपट  दौड़

बैतूल की सड़कों में  में आज भी तांगा सरपट सरपट  दौड़ लगाता  है। वह पर मुझे  काफी दिनों  के बाद  फिर तांगे पर सफर का मौका मिला। कोठी बाजार से रेलवे स्टेशन के लिए आटो वाले 10 रुपये लेते हैं तो तांगे वाले 5 रुपये में ही  पहुंचा देते हैं।   घोड़ाडोंगरी ब्लॉक में स्थित सारणी बिजली पैदा करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
 मलाजपुर स्थित भूत भागने की जगह भी काफी प्रसिद्ध  है।  मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का मेला प्रतिवर्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर तकरीबन एक माह बसंत पंचमी तक चलता है। बाबा साहब की समाधि की मान्यता है इसकी परिक्रमा करने वाले को प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिलता है। यहां से कोर्इ भी निराष होकर नहीं लौटता है। इस वजह से मेला में दूर-दूर से श्रद्धालु आते है। मलाजपुर जिला मुख्यलाय से 42 किलामीटर की दूरी पर विकासखण्ड चिचोली में सिथत है।
 मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का समाधि काल 1700-1800 र्इसवी का माना जाता है। यहां हर साल पौष की पूर्णिता से मेला शुरू होता है। बाबा साहब का समाधि स्थल दूर-दूर तक प्रेत बाधाओं से मुकित दिलाने के लिये चर्चित है। खांसकर पूर्णिमा के दिन यहां पर प्रेत बाधित लोगों की अत्यधिक भीड रहती है। यहां से कोर्इ भी निराश होकर नहीं लौटता है। यह सिलसिला सालों से जारी है। उन्होंने कहां कि यहा पर बाबा साहब तथा उन्हीं के परिजनों की समाधि है। समाधि परिक्रमा करने से पहले बंधारा स्थल पर स्नान करना पड़ता है, यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यकित जैसे-जैसे परिक्रमा करता है वैसे वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनी में अपनी आवाल मिलाते है। इसकी लेकर महंत कहते है कि यह बाबा का आशीष है। मह भर के मेला में श्रद्धालुओं के रूकने की व्यवस्था जनपद पंचायत चिचोली तथा महंत करते है। समाधि स्थल चिचोली से 8 किमी. दूर है। यहां बस जीप या दुख के दुपाहिया, चौपाहिया वाहनों से पहुंचा 
जा सकता है। मेला में सभी प्रकार के सामान की दुकाने सजती है